नई दिल्ली : हिंदुस्तान में कुछ वर्षों से जिस तरह मॉब हत्या की घटनाएँ देखने को मिल रही वो सच में देश को एक अंधेरे युग की तरफ ले जा रही हैं। आने वाले वक़्त में शायद हमारे लिए अपने देश का कानून और प्रजातंत्र एक स्वप्न हो जाएगा। दिल्ली में भी लगातार सत्ता के गलियारों में भी ऐसी कुछ मॉब हत्याओं की वारदात देखने को मिल रही। ताज़ा आंकड़ों के हिसाब से अगर ये प्रक्रिया जारी रही तो देश अपने सबसे बुरे दौर की तरफ अग्रसर हो जाएगा। सीबीआई के साथ मॉब हत्या या छेड़छाड़ की खबर ने राजनीतिक जगत में अफरा तफरी मचा दी है। जिस तरह एक स्वतंत्र संस्था पर सरकार का दबाव और उसके क्रियान्वयन पर सरकार की दखलंदाजी हो रही है, उससे शायद संस्था के प्रति आम नागरिक का भरोसा खत्म हो जाए। सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को रातोंरात छुट्टी पर भेजना देना, विशेष प्रमुख के खिलाफ़ (भ्रष्टाचार आरोप) जाँच कर रहे अधिकारियों का तबादला कर देना अपने आप में देश के विनाश के लिए एक सन्देश है। सीबीआई ही नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री और उनकी सरकार नें हर संस्था का कहीं न कहीं दुरुपयोग किया है और जहाँ सफल नहीं हो सके वहां अधिकारियों के साथ शोषण किया गया है। हाल ही में किसी नीतिगत फैसले को लेकर प्रधानमंत्री और आरबीआई के बीच मतभेद की खबर आ रही है। हमारी मौजूदा सरकार के पार्टी अध्यक्ष श्री अमित शाह जी का एक बयान सच में अपने आप में देश की प्रजातंत्र और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निंदनीय है जिसमें उन्होंने कहा है कि “सर्वोच्च न्यायालय को वही फैसला देने चाहिए जिसका पालन जनता कर सके”। शायद सर्वोच्च न्यायालय के गरिमा के विरुद्ध इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता, जहाँ एक राजनेता देश की सर्वोच्च न्यायालय को ज्ञान दे रहा कि न्यायालय का कार्य करने का तरीका सही नहीं है। वह न्यायालय के फैसलों को भी घटिया राजनीति की दृष्टि से देख रहा है। अगर ये हाल बरकरार रहा तो हम शायद इंसाफ के लिए अदालत पर भरोसा न कर सकेंगे और देश की बड़ी स्वतंत्र एजेन्सीज़ अपना कार्य स्वतंत्र रूप से नहीं कर सकेंगी। मैं इसी उम्मीद के साथ खुद को विराम देता हूं कि:
ये दबदबा,
ये हुकूमत,
ये नशा,
ये दौलतें..
…सब किरायेदार हैं घर बदलते रहते हैं!