काफी दिनों से सोच रहा था लिखूं उनके बारे में जिन्हें लोग रिश्वतखोर और बेइमान के नाम से याद करते हैं। मुंह पर तो नहीं लेकिन पीठ पीछे जिन्हें हजारों गालियों का गुल्दस्ता पेश करते हैं। हाँ मैं उसी पुलिस की बात कर रहा जिसकी बुराई आपने ज़रूर सुनी या करी होगी। मैनें भी सुनी है, एक जगह नहीं बल्कि हर उस जगह जहाँ रिश्वत की बात आई, लोग मुस्कुराकर बोल पड़ते हैं “भाई पुलिस वाला है, रिश्वत तो लेगा ही”। लोग इन्हें इंसानो की श्रेणी से अलग करके देखने लगे हैं। आज यात्रा के दौरान अगर एक सेना का जवान बिना सीट के दिख जाता है तो लोग उसे प्राथमिकता देने लगते हैं उसे इज्जत देने लगते हैं, क्योंकि वह भारत माता का सच्चा पुत्र है। एक पुलिस वाले को शायद ही कोई तहेदिल से ऐसी इज्जत देता हो। क्या पुलिस वाला भारत माता का पुत्र नहीं क्या वो देश की रक्षा को तत्पर नहीं। चंद पुलिस वालों के गलती की वजह से पूरे विभाग की निंदा करना कहाँ तक न्याय है। जिस तरह एक दार्शनिक कहता है की, “हर मर्द बलात्कारी नहीं होता” उसी प्रकार हर पुलिस वाला भ्रष्ट नहीं होता।
पुलिस वाले का भी परिवार होता है, उसके भी अपने होते हैं। लेकिन ईद भी वो ड्यूटी पर ही मनाता है और दीपावली भी। वह अपने फर्ज के लिए कितनी होलियां त्याग कर दिया है। उसके बच्चे भी अपने पिता की राह देखते हैं।
स्कूल में जब हर बच्चे के पिता मीटिंग में आते हैं तो एक पुलिस वाले का बच्चा होता है जिसकी माता वहां पिता का फर्ज पूरा करती है। क्या उस बच्चे की कोई चाह नहीं होती होगी। उसे तो बस इतना पता रह्ता है पिताजी देश सेवा कर रहे हैं।
बात अगर भ्रष्टाचार की करें तो पुलिस विभाग ही सिर्फ इसका उदाहरण नहीं है। आज चिकित्सा, शिक्षा, रक्षा आदि इसमें पीछे नहीं रह गए हैं। लेकिन बदनाम सदियों से पुलिस को ही किया जा रहा।
ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च ऐण्ड डेवलपमेंट और ऐडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ़ कॉलेज ऑफ़ इंडिया के आंकड़ों के हिसाब से 90%से अधिक पुलिस अधिकारी 12 घंटे से ज्यादा काम कर रहे हैं जो इंडियन लेबर लॉ के आर्टिकल 42 का उल्लंघन है। उसी ने ये भी दावा किया है की 73% से ज्यादा पुलिस ऑफिसर ऐसे हैं जिन्हें साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं नसीब है।
2016 में सिर्फ आगरा जिलें के ही 6 सिपाहियों की ड्यूटी पर हार्ट डिसऑर्डर से मृत्यु हो गई। ऐसे बहुत से उदाहरण हर महीने आपको देखने को मिल जाएँगे। लगातार पुलिस बल पर मानसिक दबाव और उसके बावजूद जनता की उस पर तीखी आलोचना हर साल काफी पुलिस कर्मियों को आत्महत्या करने को मजबूर कर देती है।
सयुंक्त राष्ट्र के नियमानुसार हर देश मे एक लाख जनसँख्या पर 222 पुलिस बल होने चाहिए लेकिन हमारे मुल्क में एक लाख पर सिर्फ 180 पुलिस वाले हैं। हिंदुस्तान मे अभी भी 188 पुलिस थाने ऐसे हैं जहाँ पर वाहन नहीँ है। ओर 402 थानों में टेलीफोन की सुविधा उप्लब्ध नहीं है। यही वजह है की पुलिस का मनोबल दिन प्रतिदिन कम होता चला जा रहा।
किसी एक भ्रष्ट पुलिस वाले की वजह से अगर आप समूचे पुलिस विभाग को भ्रष्टाचार युक्त कहते हैं तो आप महाराष्ट्र पुलिस के हेमंत करकरे, अशोक कामते, विजय सलसकर को जरुर याद कर लीजियेगा जिन्होने अपने प्राण त्याग पर देश की रक्षा की। उत्तर प्रदेश पुलिस के एस•पी● मुकुल द्विवेदी और एस○एच○ओ○ संतोष कुमार ने मथुरा में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए प्राण त्याग दिये।
पुलिस की सच्चाई अगर आपको देखनी है तो कभी उनके सरकारी आवासो की हालात देखिए जो अपने अन्तिम चरण में हैं। उसकी छत बरसात के पानी को रोकने मे असफल हो गई है। पुलिस मेस का खाना अगर हमारे सो-कॉलड राज नेताओं को खिला दिया जाए तो शायद दिल्ली में संसद से ज्यादा Aiims में नेता दिखेंगे।
महीने भर 24 घंटे ड्यूटी करने वाला पुलिस सिर्फ 25000 मासिक वेतन पाता है वहीं महीने मे सिर्फ 24 दिन ,और हर दिन सिर्फ 8घंटे काम करने वाला शिक्षक, क्लर्क, बैंक कर्मी 30000 वेतन पा कर भी वेतन बढ़ोतरी के लिए धरने कर रहा है।
मेरा ये लेख उन लोगों के लिए है जो पुलिस को करीब से नहीं जानते थे। उम्मीद करता हूं जब अगली बार जब आपकी किसी पुलिस वाले से मुलाक़ात हो तो आप उनका सहृदय अभिनंदन करेंगे। आपके हौंसलाअफजाई से उनका मनोबल बढ़ेगा।